लेखक – आशीष कुमार
ओलंपिक में देश के जमीनी खेल कुश्ती में पदक जीतने का जो सिलसिला सुशील कुमार ने 2008 के बीजिंग से शुरू किया था, वह सुखद रूप से 2024 के पेरिस ओलंपिक में भी जारी रहा । 2008 में सुशील कुमार ने कांस्य, 2012 में सुशील ने रजत और योगेश्वर दत्त ने कांस्य, 2016 में साक्षी मलिक ने कांस्य, 2020 टोक्यो ओलंपिक में बजरंग पूनिया ने कांस्य और रवि दहिया ने रजत पदक जीता था। अमन का यह पहला ओलंपिक था और उन्होंने अपने पहले ही ओलंपिक में कांस्य पदक जीत लिया है। भारतीय पहलवानों के लिए इस सिलसिले को जारी रखना सर्वाधिक चुनौती पूर्ण था क्योंकि भारतीय कुश्ती पिछले दो वर्षों से विवादों में रही है और इसका असर पहलवानों के प्रदर्शन पर भी पड़ा ।
पेरिस ओलिंपिक के लिए सिर्फ पांच महिला पहलवान और एकमात्र पुरुष पहलवान अमन सहरावत ही क़्वालीफाई कर पाए । विवादों का यह साया पेरिस ओलंपिक में भी जारी रहा फाइनल मुकाबले से पहले विनेश फोगाट का बड़ा हुआ सौ ग्राम वजन एक सौ चालीस करोड़ से ज्यादा भारतीयों के अरमानों पर पानी फेर गया वहीं दूसरी तरफ अपने पहले ही मैच में हारकर बाहर होने वाली युवा महिला पहलवान अंतिम पंघाल ओलंपिक के आखिरी चरण में विवाद में फंस गई । अंतिम पंघाल पर आरोप लगा कि उन्होंने अपना एक्रेडिटेशन कार्ड अपनी बहन को इस्तेमाल के लिए दिया । इन सब विवादों के बीच भारतीय कुश्ती दल से जो एकमात्र खुशखबरी मिली वह अमन सहरावत के कांस्य पदक के साथ आई । अमन ट्रायल में अपने मार्गदर्शक रवि दहिया को हराकर 57 किलोग्राम वेट कैटेगरी में भारत का प्रतिनिधित्व करने पेरिस पहुंचे थे ।
शुरुआती दो मैचों में अपने विरोधी पहलवानों को आसानी से पराजित करके अमन सेमीफाइनल में पहुंचे लेकिन सेमीफाइनल में जापान के पहलवान रे हिगुची की चुनौती से पार नहीं पा सके । स्वर्णिम उम्मीदें धूमिल हो जाने के बाद भारतीय कुश्ती प्रेमियों की सारी आशाएं अमन से कांस्य पदक के मैच पर टिक गयी । सभी उम्मीदों पर खरा उतरते हुए अमन ने अपने विरोधी को छकाते और थकाते हुए आसानी से कांस्य पदक पर कब्जा कर लिया लेकिन ‘आसान होता तो हर कोई कर लेता’ कि इस पंक्ति को अपने कमरे की दीवार पर लिखने वाले अमन ने वाकई में इस पंक्ति को चरितार्थ करके दिखाया ।
मात्र 11 साल की उम्र में माता-पिता का साया उठ जाने के बाद 21 वर्ष की उम्र में सबसे युवा भारतीय ओलंपिक पदक विजेता बनने वाले अमन सहरावत ने देश को 2028 लॉस एंजेल्स ओलंपिक में भारतीय तिरंगे को फहराने की चुनौती को स्वीकार कर लिया है । कांस्य पदक जीतने के बाद अमन ने कहा, “मैं भारत के लोगों से कहना चाहता हूं कि मैं 2028 में आपके लिए स्वर्ण पदक जरूर जीतूंगा। बचपन में मैंने अपने माता-पिता को खो दिया और मेरे दादा ने मेरा पालन-पोषण किया था। लक्ष्य स्वर्ण था, लेकिन इस बार मुझे कांस्य से संतोष करना पड़ा। मुझे सेमीफाइनल की हार को भूलना था। मैंने खुद से कहा इसे जाने दो और अगले पर ध्यान केंद्रित करो। सुशील पहलवान जी ने दो पदक जीते, मैं 2028 में जीतूंगा और फिर 2032 में भी।” छत्रसाल स्टेडियम के अखाड़े से निकले हुए युवा भारतीय पहलवान अमन सहरावत की यह सफलता सभी भारतीय खिलाड़ियों को एक प्रेरणा देगी ।